Tuesday 17 February 2015

ए जिंदगी...

ए जिन्दगी, मुज़े और कितना जीना बाकी है?
जल्दीकर, मौत से भी कुछ हिसाब लेना बाकी है...

तेरे ही बनाये जगत में उल्ज़ा रह गया मैं तो,
नफ़रत सारी देख ली, प्यार देखना बाकी है...

दिल में भरा है दर्दका समंदर बहुत बड़ा,
बस तेरे दामनको उससे भिगाना बाकी है...

दर-बदर भटकता रहा प्यारके लिए मैं,
आधा मर लिया, अब आधा मरना बाकी है...

                                          - चेतन सोलंकी 'गुमनाम'

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